सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब राष्ट्रपति को भी विधेयकों पर समय-सीमा में लेना होगा निर्णय
13 अप्रैल 2025 |
भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर निर्णय लेने के लिए निर्धारित समय सीमा में कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। यह फैसला भारतीय लोकतंत्र और संघीय व्यवस्था के लिए एक मील का पत्थर माना जा रहा है।
पूरा मामला क्या है?
हाल ही में तमिलनाडु राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। मामला यह था कि तमिलनाडु विधानसभा ने लगभग 10 विधेयक पारित किए, जिन्हें राज्यपाल के पास भेजा गया। लेकिन राज्यपाल ने न तो उन पर हस्ताक्षर किए, न उन्हें वापस लौटाया और न ही राष्ट्रपति के पास भेजा — यह एक “पॉकेट वीटो” की स्थिति थी, जिसमें गवर्नर अनिश्चितकाल तक निर्णय को टाल देते हैं।
तमिलनाडु सरकार ने इसे असंवैधानिक मानते हुए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि राज्यपाल द्वारा आरक्षित किए गए बिलों पर राष्ट्रपति को भी समय-सीमा के भीतर निर्णय लेना होगा। यह आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के प्रावधानों के तहत दिया गया है, जो राज्यपाल और राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों से संबंधित हैं।
संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में क्या कहा गया है?
राज्यपाल के पास किसी राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर चार विकल्प होते हैं:
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हस्ताक्षर करना (Assent) – जिससे विधेयक कानून बन जाता है।
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हस्ताक्षर से इनकार करना (Withhold Assent)।
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विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना (Reserve for the President)।
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विधेयक को पुनर्विचार हेतु विधानसभा को लौटाना (Return the Bill) – अगर विधानसभा दोबारा पास कर दे तो गवर्नर को हस्ताक्षर करना अनिवार्य होता है।
अब तीसरे विकल्प — यानी जब विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है — पर भी निर्धारित समय सीमा लागू हो गई है।
क्यों है यह फैसला अहम?
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यह आदेश विधायिकाओं की स्वतंत्रता और कार्यक्षमता को बनाए रखने की दिशा में बड़ा कदम है।
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राज्यपाल और राष्ट्रपति की निष्क्रियता पर नियंत्रण लगाने का प्रयास है।
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केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संविधानिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करेगा।
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भारत की संघीय लोकतांत्रिक प्रणाली को और मजबूत बनाएगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश केवल एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक सुधार है। इससे न सिर्फ राज्य सरकारों को समय पर विधायी निर्णय मिलेंगे, बल्कि राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी। यह भारत के लोकतंत्र को तेज़, उत्तरदायी और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।














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