लेखक: ग्लोबल अपडेट्स टीम
प्रकाशन तिथि: [23 may 2025]
प्रस्तावना
हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा को व्हाइट हाउस में बुलाकर एक विवादास्पद मुद्दे पर घेर लिया। ट्रंप ने साउथ अफ्रीका में “व्हाइट जीनोसाइड” यानी गोरे लोगों के नरसंहार का दावा करते हुए कुछ कथित वीडियो और चित्र प्रस्तुत किए, जिससे यह मुलाकात एक अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बन गई।
ट्रंप की रणनीति: क्या ये एक पूर्व-नियोजित हमला था?
डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम अचानक नहीं था। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप इस मुलाकात को एक “एंबुश” यानी घात लगाकर हमला करने जैसा अवसर बनाना चाहते थे। बातचीत की शुरुआत सामान्य और हंसमुख माहौल में हुई, लेकिन जल्द ही ट्रंप ने आरोपों की झड़ी लगा दी।
उन्होंने कहा कि साउथ अफ्रीका में श्वेत किसानों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है और सरकार इसका समर्थन कर रही है। ट्रंप ने इसे “व्हाइट जीनोसाइड” कहा और रामफोसा को इन सबूतों के आधार पर जवाब देने को मजबूर किया।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: रंगभेद से लोकतंत्र तक
दक्षिण अफ्रीका का इतिहास रंगभेद (Apartheid) से गहराई से जुड़ा हुआ है। 1948 से लेकर 1994 तक श्वेत अल्पसंख्यकों ने अश्वेत बहुसंख्यकों पर शासन किया। महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं ने इस रंगभेद व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किया।
1994 में नेल्सन मंडेला के राष्ट्रपति बनने के साथ रंगभेद की समाप्ति हुई और एक लोकतांत्रिक, समावेशी शासन की शुरुआत हुई। आज की दक्षिण अफ्रीकी सरकार उसी लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रतिनिधि है।
‘व्हाइट जीनोसाइड’ का दावा: सच्चाई या राजनीतिक हथकंडा?
ट्रंप द्वारा उठाया गया ‘व्हाइट जीनोसाइड’ का मुद्दा विवादास्पद है। कुछ दक्षिण अफ्रीकी किसान संगठनों ने खेतों पर हो रही हिंसाओं की बात कही है, लेकिन सरकार और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का कहना है कि ये घटनाएं नस्लीय नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक कारणों से हो रही हैं।
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने ट्रंप के दावों को खारिज करते हुए उन्हें “गैर-जिम्मेदाराना और तथ्यहीन” बताया है। वे मानते हैं कि ट्रंप के बयान अंतरराष्ट्रीय समुदाय में गलत संदेश फैला रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
ट्रंप के इस बयान के बाद दुनियाभर के कई अखबारों और मीडिया हाउस ने इसे “Ambush Diplomacy” कहा। अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के संबंधों में तनाव महसूस किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर भी इस मुद्दे को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप का यह क़दम अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा विवाद बन गया है। एक ओर यह दर्शाता है कि कैसे वैश्विक नेता अपने राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय बैठकों का इस्तेमाल कर सकते हैं, वहीं यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसे आरोपों से अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर कितना असर पड़ता है।
दक्षिण अफ्रीका जैसे देश, जिन्होंने वर्षों की रंगभेद नीति को पार कर लोकतंत्र अपनाया है, उनके लिए ऐसे आरोप न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि स्थिरता के लिए खतरा भी बन सकते हैं।














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