लेखक: ग्लोबल अपडेट्स टीम | दिनांक: 8 जून 2025
🌍 भूमिका:
ब्रिक्स (BRICS) — ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का यह संगठन अब वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक शक्तिशाली समूह बन चुका है। साल 2025 के शिखर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, लेकिन जो सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही वह थी — तुर्की और पाकिस्तान की ब्रिक्स में एंट्री को भारत द्वारा कूटनीतिक रूप से रोकना।
🧠 भारत की चुप रणनीति, लेकिन बड़ा वार
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पाकिस्तान और तुर्की दोनों पिछले एक साल से BRICS सदस्यता के लिए प्रयासरत थे।
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भारत ने सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया, लेकिन पर्दे के पीछे गहरी कूटनीतिक चालें चलीं।
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भारत के शांत रवैये के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने स्पष्ट रूप से रिपोर्ट किया कि भारत ने ही दोनों देशों की एंट्री को रोका।
🇮🇳 भारत और चीन की नजदीकी: एक नई शुरुआत?
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सम्मेलन में भारत और चीन के बीच वर्षों से जमी बर्फ पिघलती नजर आई।
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वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सेनाएं पीछे हटीं और एक बार फिर सहयोग की दिशा में कदम बढ़े।
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यह संदेश गया कि भारत अपने हितों के लिए चीन तक से सामंजस्य बना सकता है, तो पाकिस्तान और तुर्की जैसे विरोधी देशों को पीछे धकेलना स्वाभाविक है।
🇹🇷 तुर्की की रणनीतिक स्थिति: वरदान या भ्रम?
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तुर्की की भौगोलिक स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है — यूरोप और एशिया के संगम पर।
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यह नाटो का सदस्य है, लेकिन रूस के करीब जाकर ब्रिक्स में एंट्री की कोशिश कर रहा था।
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ब्लैक सी, सी ऑफ मरमरा और बॉस्फोरस स्ट्रेट जैसी जलधाराएं इसे एक समुद्री शक्ति बनाती हैं।
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यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान तुर्की ने अनाज और तेल के व्यापार को नियंत्रित कर अपनी ताकत दिखाई थी।
🇵🇰 पाकिस्तान: कर्जदार, अकेला और अस्वीकृत
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पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डगमगाई हुई है, IMF की लिस्ट में उसका नाम पहले से ही कर्जदारों में सबसे ऊपर है।
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ब्रिक्स के New Development Bank (NDB) से ऋण लेने की उम्मीद थी, पर भारत ने राह रोक दी।
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पाकिस्तानी मीडिया ने खुद कहा कि “भारत ने ब्रिक्स में पाकिस्तान की एंट्री रोकी।”
📸 ब्रिक्स सम्मेलन की तस्वीरों में गुम थे तुर्की और पाकिस्तान
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सम्मेलन में जहां भारत और चीन के नेता एक-दूसरे से हाथ मिला रहे थे, वहीं पाकिस्तान और तुर्की नदारद थे।
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अर्मेनिया और अज़रबैजान जैसे कट्टर दुश्मन भी मंच पर थे, लेकिन तुर्की-पाक की अनुपस्थिति स्पष्ट संदेश थी।
📢 भारत का संदेश दुनिया को: विरोधियों के लिए कोई जगह नहीं
भारत ने इस सम्मेलन के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया कि:
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जो देश भारत की संप्रभुता और हितों के विरुद्ध काम करेंगे, उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन नहीं मिलेगा।
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कूटनीति में अब भारत बचाव नहीं, आक्रामक संतुलन की नीति अपना रहा है।
📌 निष्कर्ष:
तुर्की और पाकिस्तान की ब्रिक्स में अस्वीकृति केवल एक सदस्यता से वंचित रहना नहीं है, बल्कि यह भारत की वैश्विक ताकत और रणनीतिक सोच की जीत है। भारत अब न केवल वैश्विक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है, बल्कि उन राष्ट्रों को भी संदेश दे रहा है, जो उसकी संप्रभुता को चुनौती देते हैं।














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