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“भारत कोई धर्मशाला नहीं है”: शरणार्थियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

भारत कोई ‘धर्मशाला’ नहीं: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

लेखक: Global Updates |


🔴 प्रस्तावना

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट कर दिया कि भारत कोई ‘धर्मशाला’ नहीं है जहाँ कोई भी विदेशी नागरिक आकर स्थायी रूप से बस सके। यह फैसला श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी सुभाष करण के मामले में सुनाया गया, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा, शरणार्थी नीति और संवैधानिक सीमाओं पर बहस को फिर से जीवंत कर दिया है।


⚖️ मामला क्या था?

  • 2015 में सुभाष करण, एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक, भारत में गैरकानूनी रूप से प्रवेश करने पर गिरफ्तार किया गया था।

  • उस पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत मुकदमा चलाया गया, जिसमें आरोप था कि उसके LTTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) से संबंध थे।

  • LTTE भारत और श्रीलंका दोनों में ही आतंकी संगठन घोषित किया जा चुका है।

  • 2018 में उसे दोषी करार दिया गया और शुरू में 10 साल की सजा सुनाई गई, जिसे 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने 7 साल कर दिया।


🏛️ हाईकोर्ट का आदेश

  • मद्रास हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सजा पूरी होने के बाद उसे श्रीलंका डिपोर्ट किया जाए।

  • जब तक उसे वापस नहीं भेजा जा सकता, उसे शरणार्थी कैंप में रखा जाए


🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट में अपील

  • सुभाष करण ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी कि:

    • श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है

    • उसकी पत्नी और बच्चे भारत में रह रहे हैं, इसलिए उसे वापस भेजना अन्यायपूर्ण और अमानवीय होगा।

  • उसका तर्क था कि पूर्व उग्रवादियों पर श्रीलंका में दमन हो रहा है।


👨‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

  • जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा:

    • India is not a dharamshala” – भारत एक धर्मशाला नहीं है जहाँ हर विदेशी नागरिक को शरण दी जाए।

    • देश की संविधानिक सीमाएं, राष्ट्रीय सुरक्षा, और जनसंख्या दबाव को ध्यान में रखते हुए इस तरह की याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता।


📌 इस फैसले के बड़े प्रभाव

  1. शरणार्थियों के प्रति भारत की नीति अब और अधिक सख्त व स्पष्ट होगी।

  2. राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकी लिंक वाले मामलों में शून्य सहिष्णुता की नीति को बल मिला।

  3. भारत को “मानवता” के नाम पर अतिरिक्त जनसंख्या बोझ उठाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता

  4. यह फैसला उन संगठनों के लिए भी संदेश है जो मानवाधिकार के नाम पर सुरक्षा समझौतों की मांग करते हैं।


📚 निष्कर्ष

यह फैसला न सिर्फ एक व्यक्तिगत मामले का निपटारा करता है बल्कि यह पूरे देश की शरणार्थी नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा दर्शन को नया आकार देता है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख स्पष्ट करता है कि भारत संवेदनशील जरूर है, लेकिन अंधे तरीके से शरण नहीं दे सकता। अब यह देखना होगा कि सरकार इस फैसले को भविष्य की नीतियों में कैसे लागू करती है।

 

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