रूस ट्रंप के ग्रीनलैंड कब्जे की योजना में हस्तक्षेप नहीं करेगा: पुतिन का बड़ा बयान
नई दिल्ली: हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक चौंकाने वाला बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि रूस, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ग्रीनलैंड को खरीदने या कब्जे में लेने की योजना में हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस बयान ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से रूस और अमेरिका हमेशा विरोधी खेमों में खड़े रहे हैं, लेकिन इस बार मामला अलग है।
क्या है मामला?
डोनाल्ड ट्रंप, अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, दुनिया के सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड को अमेरिका में मिलाने की योजना बना रहे थे। ग्रीनलैंड डेनमार्क का एक स्वायत्त क्षेत्र है, लेकिन उसकी सामरिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों की वजह से अमेरिका की उस पर लंबे समय से नजर है। ट्रंप की इस योजना का पहले डेनमार्क ने विरोध किया था, लेकिन अब रूस ने अप्रत्याशित रूप से कहा है कि वह इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
रूस-अमेरिका की अप्रत्याशित मिलीभगत
ऐतिहासिक रूप से, जब भी अमेरिका किसी भूभाग पर दावा करता है या हस्तक्षेप करता है, रूस उसका विरोध करता रहा है। चाहे क्यूबा मिसाइल संकट हो, उत्तर और दक्षिण कोरिया का संघर्ष हो या फिर भारत-पाकिस्तान विवाद, रूस ने हमेशा अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोला है।
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परंतु, इस बार रूस ने ट्रंप के ग्रीनलैंड अभियान को लेकर तटस्थता दिखाने का फैसला किया है।
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विश्लेषकों का मानना है कि रूस का यह रुख यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका के रवैये से जुड़ा हो सकता है।
अप्रत्यक्ष समझौता: ग्रीनलैंड के बदले यूक्रेन?
विशेषज्ञों का मानना है कि रूस और अमेरिका के बीच एक अघोषित समझौता हो सकता है, जिसमें रूस ग्रीनलैंड पर अमेरिका के दावे का विरोध नहीं करेगा, बशर्ते अमेरिका यूक्रेन मुद्दे पर रूस को खुली छूट दे।
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इसका अर्थ है कि रूस, अमेरिका को ग्रीनलैंड में हस्तक्षेप करने देगा, जबकि अमेरिका रूस को यूक्रेन में छूट देगा।
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यह कूटनीतिक समीकरण यूरोपीय संघ (EU) के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इससे यूरोप की सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
आर्कटिक का बढ़ता महत्व
ग्रीनलैंड का मुद्दा सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय और आर्थिक भी है। आर्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ पिघल रही है, जिससे वहां की खदानें, तेल भंडार और नौवहन मार्ग रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो गए हैं।
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रूस पहले से ही आर्कटिक में बड़े भूभाग पर कब्जा रखता है और अमेरिका अब ग्रीनलैंड पर नजर गड़ाए हुए है ताकि वह भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर सके।
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विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक राजनीति का नया युद्धक्षेत्र बन सकता है।
इतिहास का सबक: अलास्का की गलती दोहराएगा रूस?
इस मुद्दे पर इतिहास भी दोहराया जा रहा है। रूस ने कभी अलास्का को अमेरिका को बेच दिया था, जिसे बाद में रूस की एक बड़ी भूल माना गया।
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वर्तमान में अमेरिका के पास अलास्का की वजह से कई तेल और गैस भंडार हैं, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित हुए हैं।
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अब ग्रीनलैंड को लेकर अमेरिका की रणनीति कुछ वैसी ही नजर आ रही है।
वैश्विक प्रभाव और निष्कर्ष
पुतिन का यह बयान वैश्विक राजनीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है। अमेरिका और रूस, जो अब तक विरोधी थे, इस मुद्दे पर अप्रत्याशित रूप से एक साथ दिख रहे हैं।
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अगर ग्रीनलैंड को लेकर अमेरिका सफल होता है, तो यह न केवल आर्कटिक में उसकी उपस्थिति मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी प्रभाव डालेगा।
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रूस और अमेरिका की यह कूटनीतिक ‘समझौता’ नीति यूरोपीय संघ और अन्य देशों के लिए भविष्य में चिंता का विषय बन सकती है।
स्रोत:
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पुतिन का आधिकारिक बयान (हाल ही की प्रेस मीटिंग में दिया गया)।
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ट्रंप के ग्रीनलैंड खरीदने की योजना (2019 में सार्वजनिक रूप से सामने आई थी)।
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आर्कटिक में रूस और अमेरिका की सैन्य उपस्थिति पर विभिन्न विश्लेषण।














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