एम.के. स्टालिन ने बनाई राज्य स्वायत्तता पर उच्च स्तरीय समिति: जानिए क्या है उद्देश्य?
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है जो भारत के संघीय ढांचे पर बड़ी बहस को जन्म दे सकता है। उन्होंने राज्य को अधिक स्वायत्तता (Autonomy) दिलाने के उद्देश्य से एक उच्च स्तरीय समिति (High-Level Panel) के गठन की घोषणा की है। यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब राज्य और केंद्र के बीच संबंधों में तल्खी देखी जा रही है।
🔍 क्या है पूरा मामला?
मुख्यमंत्री स्टालिन का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के अधिकारों में बार-बार हस्तक्षेप किया जा रहा है। उनका मानना है कि भारत के संघीय ढांचे में अब संतुलन की जरूरत है और राज्यों को अपने विषयों पर अधिक नियंत्रण मिलना चाहिए।
🧑⚖️ समिति में कौन-कौन सदस्य हैं?
यह समिति तीन सदस्यों की होगी, जिनमें शामिल हैं:
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न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ (सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट जज) – चेयरमैन
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अशोक वर्धन शेट्टी (पूर्व आईएएस अधिकारी)
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एम. नगनाथन (आर्थिक विशेषज्ञ और पूर्व उपाध्यक्ष, तमिलनाडु राज्य योजना आयोग)
📅 रिपोर्ट कब तक आएगी?
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अंतरिम रिपोर्ट: जनवरी 2026 तक
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अंतिम रिपोर्ट: दो वर्षों के भीतर
🎯 समिति के प्रमुख उद्देश्य
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संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) के तहत राज्यों के अधिकारों पर पुनः विचार करना।
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स्टेट लिस्ट, यूनियन लिस्ट, और कॉनकरेंट लिस्ट में सुधार के सुझाव देना।
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यह सुनिश्चित करना कि राज्य अपने विषयों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें।
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भारत के संघीय ढांचे को अमेरिका जैसे देशों की तरह अधिक विकेन्द्रित और राज्यों के पक्ष में संतुलित बनाना।
🗣️ राजनीतिक पृष्ठभूमि
हाल ही में पीएम मोदी के तमिलनाडु दौरे के समय मुख्यमंत्री स्टालिन उनके कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे। साथ ही, पीएम मोदी ने अपने भाषण में यह भी तंज किया कि यदि तमिलनाडु के नेता तमिल भाषा को लेकर इतने भावुक हैं, तो वे अपने पत्रों पर हस्ताक्षर भी तमिल में कर सकते हैं।
📌 निष्कर्ष
एम.के. स्टालिन द्वारा की गई यह पहल केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं रह सकती। अगर इस समिति की सिफारिशों को गंभीरता से लिया गया, तो यह देश के संविधानिक ढांचे और राज्य-केंद्र संबंधों में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।














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